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भागवत महापुराण/स्कंध11/अध्याय 9
- परिग्रहो हि दु:खाय यद् यत्प्रियतमं नृणाम् ।
- अनन्तं सुखमाप्नोति तद् विद्वान् यस्त्वकिञ्चन: ॥ १ ॥अवधूत दत्तात्रेय जी ने कहा--
- राजन! मनुष्य को जो वस्तुएं अत्यंत प्रिय लगती है, उन्हें इकट्ठा करना ही उनके दुख का कारण है। जो बुद्धिमान पुरुष यह बात समझ कर अकिंचन भाव से रहता है-- शरीर की तो बात ही अलग, मन से भी किसी वस्तु का संग्रह नहीं करता-- उसे अनंत सुख स्वरूप परमात्मा की प्राप्ति होती है।11/9/1
- एक कुरर पक्षी अपनी चोंच में मांस का टुकड़ा लिए हुए था।
- उस समय दूसरे बलवान पक्षी, जिनके पास मांस नहीं था, उससे छीनने के लिए उसे घेरकर चोचे मारने लगे।
- जब कुरर पक्षी ने अपनी चोच से मांस का टुकड़ा फेंक दिया, तभी उसे सुख मिला।11/9/2
- Attachment creates misery, but the person who is unattached and has no material possessions is qualified to achieve unlimited happiness.
- बालक
- कन्या
- बाण
- सांप
- मकड़ी
- भृंग
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